Sunday 3 May 2015


किस्सा दो समितियों का
(अंतिम भाग)

(लेख का पहला भाग व् दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें)

उधर अभी तक कुछ आवारा कुत्तों को आवारा बच्चों के अत्याचार से बचाने के अतिरिक्त कोई भी सफलता चुन्नीलाल की समिति अर्जित न कर पायी थी. आवारा कुत्तों के भविष्य को लेकर कुछ गोष्ठियां भी आयोजित की गयीं थीं और इस समस्या पर गंभीर चर्चा भी हुई थी. पर अभी तक कोई ऐसी महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली थी जो की अखबारों की सूर्खी बन पाती या जिस को लेकर किसी टी वी चैनल पर गरमा-गरम बहस हो पाती. अब सुखीलाल की दौड़-धूप ने उन्हें एक स्वर्णिम अवसर दे दिया था.

म्युनिसिपेलिटी ने कई आवारा कुत्तों को पकड़ लिया था. चुन्नीलाल को पूरा विश्वास था कि इन कुत्तों को अमानवीय तरीके से खत्म करने की पूरी योजना बनायी जा चुकी थी. उन्होंने तुरंत एक आंदोलन छेड़ दिया. उनकी मांग थी की इन असहाय कुत्तों को तुरंत छोड़ दिया जाये और उन्हें अपने-अपने मोहल्लों में  पुनः विस्थापित किया जाये.  

सुखीलाल ने सुना तो गुस्से से कांप उठे. लम्बी प्रतीक्षा और अथक प्रयास के बाद उनकी  प्रतिज्ञा पूरी होने वाली थी कि चुन्नीलाल ने अड़ंगा लगा दिया था. उन्होंने अपना आंदोलन तेज़ कर दिया. चुन्नीलाल भी पीछे हटने वाले न थे. उन्होंने भी अपनी पूरी शक्ति अपने आंदोलन में झोंक दी.

दोनों आंदोलनों ने प्रचंड रूप ले लिया. आंदोलनों के वेग से सारा नगर कंपकंपा गया. म्युनिसिपेलिटी के चेयरमैन घबरा गये. ऐसा तो पहले कभी न हुआ था. क्या करें, क्या न करें कुछ समझ न पा रहे थे. मानवों से कुत्तों की सुरक्षा का सोचें कि कुत्तों से मानवों की सुरक्षा का?

जब चेयरमैन को कुछ न सूझा तो उन्होंने दोनों समितियों के अध्यक्षों को बुलाया. खूब सोच-विचार हुआ. खूब तर्क-वितर्क हुआ. कोई भी ज़रा भी पीछे हटने को तैयार न था. कोई रास्ता दिखाई न दे रहा था. हार कर चेयरमैन महोदय ने कहा, “क्यों न देश के दूसरे नगरों में प्रचलित प्रथा की जानकारी प्राप्त की  जाये? मैं आज ही एक आदेश जारी करता हूँ. सुखीलाल जी आप देश भ्रमण कर यह पता लगाओ कि अन्य नगरों में कुत्तों से मानवों की सुरक्षा का क्या-क्या प्रबंध किये जाते हैं. चुन्नीलाल जी आप यह जानकारी इक्कठी करो की अलग-अलग नगरों में मानवों के अत्याचारों से कुत्तों को बचाने के क्या-क्या तरीके अपनाये गये हैं.”

सुखीलाल और चुन्नीलाल ने सुना तो प्रसन्नता से फूले न समाये. दोनों को न तो तनिक सा आभास था न ही ऐसी आशा थी कि उनके आंदोलनों का इतना आश्चर्यजनक व् मन भावन परिणाम निकलेगा. दोनों ने चेयरमैन का बार-बार धन्यवाद किया.

“पर उन कुत्तों का क्या होगा जिन्हें पकड़ कर रखा गया है?” उठते-उठते चुन्नीलाल ने पूछा.

“उन्हें हरगिज़ न छोड़ा जाये,”सुखीलाल ने आवेश से कहा.

“उनके साथ कोई भी अत्याचार हम सहन न करेंगे,” चुन्नीलाल ने भी जोर दे कर कहा.

चेयरमैन असमंजस में पड़ गये. कुछ सोच कर बोले, “जब तक कोई निर्णय नहीं हो जाता तब तक उन कुत्तों को अनाथालय में रख देंगे. कुछ बच्चों को वहां से बाहर निकाल कुत्तों के लिए जगह बना लेंगे. बच्चों पर होने वाला जो खर्चा बच  जायेगा उसे कुत्तों पर खर्च कर देंगे. इस तरह न कुत्तों पर कोई अत्याचार होगा न ही किसी को कुत्तों का कोई भय रहेगा.”

“यह उत्तम विचार है,” सुखीलाल और चुन्नीलाल एक साथ बोले.

आजकल सुखीलाल और चुन्नीलाल देश भ्रमण पर हैं. परदेस में न जाने कब कैसी विपत्ता आन पड़े, यह सोच दोनों एक साथ ही यात्रा कर रहे हैं.


अनाथालय से निकाले गये बच्चे, अनाथालय में बंद आवारा कुत्ते, दोनों समितियों के सभी सदस्य उनके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

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